
कृषि कानूनों के विरोध में मंगलवार को पूरे देश में किसानों ने ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ कार्यक्रम चलाया. जिसका असर हरियाणा में भी देखने को मिला.
भिवानी: 1907 में शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए किसानों के लिए ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन चलाया था. जिसके सालों बाद अब कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने 'पगड़ी संभाल जट्टा’ कार्यक्रम का सराहा लिया है.
मंगलवार को पूरे देश में किसानों ने ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ कार्यक्रम चलाया. जिसका असर हरियाणा में भी देखने को मिला. अगर बात भिवानी की करें तो यहां कितलाना टोल पर धरने पर बैठे किसानों ने भी एक दूसरे को पगड़ियां बांधी और केंद्र सरकार को जमकर कोसा.
किसानों ने सरकार को जमकर कोसा
वहीं दूसरी तरफ गुहला चीका में भी किसानों ने शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह को याद किया और उनको श्रद्धाजंलि देते हुए पगड़ी संभाल जट्टा कार्यक्रम का आयोजन किया. इस दौरान किसानों ने कहा कि जबतक सरकार कृषि कानूनों वापस नहीं लेगी उनका ये आंदोलन जारी रहेगा.
किसानों की सरकार को दो टूक
कुरुक्षेत्र में भी भारतीय किसान यूनियन के पदाधिकारियों ने तहसीलदार को पगड़ी बांधी. किसानों ने कहा कि केंद्र सरकार को इस बार पीछे हटना ही पड़ेगा. वरना ये किसान आंदोलन ऐसे ही जारी रहेगा.

कौन हैं सरदार अजीत सिंह?
शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह का जन्म आज ही के दिन 23 फरवरी 1881 को पंजाब के खटकड़ कलां गांव के सैन्य परिवार में हुआ था. उनके दादाजी सरदार फतेह सिंह सिंहू थे और उनके बड़े भाई सरदार किशन सिंह थे, जो सरदार भगत सिंह के पिता थे.
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अजीत सिंह ने अपना अधिकांश युवा जीवन दुनिया का भ्रमण करने वाले प्रवासी के रूप में बिताया. इटली में जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया, तो उन्हें नेपल्स के एक विश्वविद्यालय में फ़ारसी पढ़ाने के लिए कहा गया. उन्होंने उत्तरी अफ्रीका में ब्रिटिश सेना में सेवारत भारतीय सैनिकों को संबोधित करते हुए, हिंदुस्तानी में कई भाषण दिए. उनके भाषणों का उद्देश्य भारत में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए आजाद हिंद फौज को खड़ा करना था.
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जानकारों की मानें तो अजीत सिंह एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ आंदोलन चलाया. उन्होंने पंजाब औपनिवेशीकरण कानून और पानी के दाम बढ़ाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए. फिर ऐसा हुआ कि उनके प्रदर्शनों से घबराई भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1907 में उन्हें लाला लाजपत राय के साथ तत्कालीन बर्मा के मांडले में निर्वासित कर दिया, लेकिन बाद में सरकार को इस फैसले को वापस लेना पड़ा.
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