सुहेलदेव के सहारे दोबारा यूपी साधने की कोशिश में BJP, ओमप्रकाश राजभर के हैं अपने दावे
सुहेलदेव

उत्तर प्रदेश के सत्ता की चाबी काफी हद तक जातीय समीकरण से ही हो कर जाती है. इसके लिये सभी राजनीतिक पार्टियां किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहती हैं. आजादी के 70 सालों बाद सभी को अब राजा सुहेलदेव राजभर याद आने लगे हैं.

वाराणसीः राजा सुहेलदेव पर राजनीति की शुरुआत 16 फरवरी 2021 से शुरू होती है. जब श्रावस्ती की राजगद्दी संभालने वाले महाराजा सुहेलदेव के नाम को हजारों साल बाद बीजेपी ने भुनाने की कोशिश शुरू कर दी. राजनीतिक पार्टियां सत्ता का सुख भोगने के लिए इस कदर लालायित रहती हैं, फिर चाहे उसे धर्म या जाति कार्ड ही क्यों ने खेलना पड़ जाये. कभी आंबेडकर, कभी बल्लभ भाई पटेल को राजनीति का मोहरा बनाया जाता रहा है. और अब सियासत को साधने के लिए महाराजा सुहेलदेव का नाम सभी राजनितिक पार्टियों ने जपना शुरू कर दिया है. तभी तो आजादी के 70 सालों बाद यूपी के 17 फीसदी वोटों को साधने के लिए उनकी सुध ली गयी.

सुहेलदेव पर सियासत.

यहां से शुरू हुआ राजनैतिक विवाद

पीएम मोदी ने जब वर्चुअल तरीके से सीएम योगी और उनकी पूरी कैबिनेट की मौजूदगी में बहराइच में महाराजा सुहेलदेव के नाम पर कई योजनायें लांच की. जिसमें उनके नाम पर स्मारक, मेडिकल कॉलेज और उसी झील का कायाकल्प, जहां उन्होंने आक्रमणकारी गजनी का अंत किया था. बस पीएम का ये उद्घाटन राजनीति की वजह बन गयी, सबसे ज्यादा मिर्च उस राजनैतिक पार्टी को लगी, जिसने अपनी जाति का वोटबैंक साधने के लिए महाराजा सुहेलदेव के नाम का सहारा लिया था. हम बात कर रहे हैं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की.

आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए गर्म हुई राजनीति

मुद्दा तब और गर्म हो गया जब बीजेपी के नेता ने महाराजा सुहेलदेव को क्षत्रिय मानकर उन्हें सम्मान दिये जाने की बात कही. यहीं से शुरु हुआ विवाद दरअसल महाराजा सुहेलदेव को राजभर कहा जाता है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी में योगी कैबिनेट के साथ एनडीए का हिस्सा रहे ओमप्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी के भगवान यानि महाराजा सुहेलदेव के नाम पर हो रही राजनीति को गलत बताते हुए उन्हें राजभर ही कहा. उन्होंने दावा किया कि सिर्फ वोटबैंक की वजह से बीजेपी राजभर महाराजा को क्षत्रिय बनाना चाहती है. जो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.

'सुहेलदेव' के नाम पर 'विकास' मेरा प्लान

ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि 18 साल पहले बनारस में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा के नीचे मैंने अपनी पार्टी का निर्माण किया था. ये करके मैंने महाराजा सुहेलदेव को सम्मान देने की शुरुआत की. 2017 में सत्ता में आने के बाद बहराइच में तमाम विकास योजनाओं का प्लान तैयार करके मैंने मुख्यमंत्री के पास भेजा. लेकिन उन्होंने उस वक्त उस प्लान को दबा दिया. जब मैंने एनडीए से खुद को अलग किया और मुझे कैबिनेट मंत्री के पद से हटाया गया. तब तक इस प्लान की याद किसी को नहीं आई, लेकिन जब चुनाव को सिर्फ 1 साल बचे हैं. तब राजभर वोट बैंक पर अपनी हिस्सेदारी दिखाने के लिए बीजेपी ने महाराजा सुहेलदेव के नाम पर यह दांव चल दिया.

बीजेपी बोली योद्धा होता है क्षत्रिय

इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच बीजेपी ने भी सुहेलदेव को कर्म से क्षत्रिय कहा है. यूपी सरकार के मंत्री रविंद्र जायसवाल ने कहा कि, जो शस्त्र उठाए और दूसरों की रक्षा करे, वो कर्म से क्षत्रिय होता है. इसिलिए महाराजा सुहेलदेव एक क्षत्रिय हैं. योगी के मंत्री यहीं नहीं रूके, उन्होंने ओमप्रकाश राजभर की ओर से उठाये जा रहे सवालों पर, उन्हें मूर्ख तक कह डाला.

राजा का नहीं होता कोई जाति और धर्म

वहीं एक महापुरुष और महाराजा के नाम पर हो रही राजनीति को जानकार सही नहीं मानते. उनका कहना है कि महाराजा का कोई जाति और धर्म नहीं होता, वो अपनी प्रजा के हितों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार होते हैं. किस जाति के हैं, किस धर्म के हैं, इस पर चर्चा करना ही उनके सम्मान को ठेस पहुंचाना है.

वही एक महापुरुष और महाराजा के नाम पर हो रही राजनीति को जानकर सही नहीं बता रहे हैं. उनका साफ तौर पर कहना है कि महाराजा का कोई जाति या धर्म नहीं होता वह अपनी प्रजा के हितों की रक्षा के लिए हमेशा पर होते हैं. वह किस जाति के हैं किस धर्म से इस पर चर्चा करना ही उनके सम्मान को ठेस पहुंचाना है और यह बहुत ही शर्मिंदा होने वाली बात है कि 1000 साल पहले राजा ने देश की खातिर इतना बड़ा कदम उठाया. आक्रमणकारी गजनी को मार गिराया उसके नाम पर हजारों साल बाद न सिर्फ राजनीति हो रही है, बल्कि उस महान राजा के जाति को भी मुद्दा बनाया जा रहा है.

राजभर समुदाय के वोटर्स पर नज़र

इन सबके बीच सवाल उठना जायज है कि आखिर 1 हजार साल पुराने इस इतिहास को दोबारा क्यों खोदा गया. तो इसका जवाब है, विधानसभा चुनाव-2022. सुहेलदेव के नाम से योजनायें और स्मारक बनाकर एक ओर बीजेपी प्रदेश के 17 फीसदी वोटों को अपने खेमें में लाने की कोशिश कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर ओम प्रकाश राजभर इन वोटों पर अपने कब्जे का दावा कर रहे हैं. ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से गठबंधन तोड़कर हैदराबाद से यूपी आये ओवैसी से हाथ मिलाया, तो राजभर और मुस्लिम वोटबैंक का गठजोड़ देख बीजेपी के होश फाख्ता हो गये. जिसके बाद यूपी में 17 फीसदी राजभर वोट बैंक के साथ पूर्वांचल में 7 फीसदी से ज्यादा वोटबैंक की तादात है. करीब 66 से ज्यादा सीटों पर राजभर वोटर्स किसी भी पार्टी का गणित बिगाड़ सकते हैं. इसी को देखकर बीजेपी ने राजभर समुदाय के भगवान कहे जाने वाले महाराजा सुहेलदेव पर बड़ा दांव खेला है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन सीटों पर बड़ा असर

राजभर वोटबैंक को साधने की चाहत में एक ओर बीजेपी जहां विकास योजनाओं से राजभर समुदाय का वोट हासिल करने में जुटी है, तो इस वोट बैंक को न खिसकने देने के ओमप्रकाश राजभर दावे कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक पूर्वांचल की करीब 24 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर राजभर के 50 हजार से ढाई लाख वोट हैं. जिनमें घोसी, बलिया, चंदौली, सलेमपुर, गाजीपुर, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही जैसे जिलों में राजभर काफी प्रभावी हैं. ये वोटबैंक कई सीटों पर जीत-हार तय करते हैं. बीजेपी इन्हें लगातार अपने ओर लाने के प्रयास में जुटी हुई है. इस वोटबैंक पर बीजेपी सरकार में 2017 से 2019 तक मंत्री रहे ओमप्रकाश राजभर की पार्टी अकेले दावेदारी करती थी. सुहेल देव के नाम पर अपनी पार्टी का नाम रखकर ओमप्रकाश राजभर ने राजभरों को एकजुट करने की काफी कोशिश की है. लेकिन अब आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सत्तासीन बीजेपी भी जातीय समीकरण साधने में जुट गयी है. जिसकी शुरुआत उन्होंने सुहेलदेव के नाम पर एक नये इतिहास लिखने की बात कह कर दी है.

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