पूर्वी लद्दाख : 10 दौर की वार्ता के बाद 500 मीटर दूर हुईं भारत-चीन की सेनाएं
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भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच 10 दौर की वार्ता के बाद दोनों सेनाओं के बीच की दूरी 500 मीटर तय की गई है. जबकि दोनों विरोधी सेनाओं के बीच की दूरी सिर्फ 30-40 मीटर ही थी. वार्ता की इस सफलता में यह तथ्य निहित है कि गलवान जैसी घटनाओं को टाला जाए. बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ...

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में सुरम्य पैंगोंग त्सो के शांत पानी के उत्तरी और दक्षिणी तट पर एशिया की दो सबसे बड़ी सेनाओं की पैदल टुकड़ी और बख्तरबंद कोर के सैनिक 10 दौर की वरिष्ठ कमांडर स्तर की वार्ता के बाद पीछे हटकर मंगलवार से एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी पर तैनात हो गए हैं.

घटनाक्रम से परिचित एक आधिकारिक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि 10 फरवरी तक दोनों देशों के बीच करीब 30-40 मीटर की दूरी थी, तब तक दोनों सेनाएं खतरनाक रूप से नजदीक थीं. वे खतरनाक रूप से करीब थे और कुछ भी हो सकता था. लेकिन अब सेनाओं ने अपने कदम पीछे हटा लिए हैं और लगभग 500 मीटर की दूरी बना ली है. इसने आईबॉल-टू-आईबॉल फेसऑफ की स्थिति को टाल दिया है. लेकिन, 10 राउंड की वार्ता की सफलता के क्या मायने हैं. तथ्य यह है कि किसी भी स्थिति में गलवान जैसी हिंसक घटनाओं को रोका जाए.

बातचीत से बनी बात
उन्होंने कहा कि कमांडर स्तर की सैन्य वार्ता भारत-चीन वार्ता का सिर्फ एक आयाम है. भारत-चीन सीमा मामलों के लिए परामर्श और समन्वय के लिए कार्य प्रणाली स्तर, एनएसए स्तर पर विशेष प्रतिनिधि वार्ता, और सबसे महत्वपूर्ण बात, बैक चैनल राजनीतिक स्तर की वार्ता जो विभिन्न स्तरों पर किसी भी समय अक्सर होती हैं, से बात आगे बढ़ी.

सेना के विघटन की बात दस राउंड की वार्ता के बाद सामने आई. पहले 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को भारतीय और चीनी पक्ष के बीच वार्ता हुई.

जारी रहेगी आगे की बातचीत
भविष्य की वार्ता के दौर में गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स में अन्य टकराव वाले क्षेत्रों में विघटन पर विचार-विमर्श किया जाएगा. जबकि डेपसांग में स्थिति अब भी बदलनी है, क्योंकि यह विरासत मुद्दा माना जाता है, जो कि मौजूदा स्थिति से पहले अप्रैल-मई 2020 से शुरू हुई थी.

भारतीय परिप्रेक्ष्य से वार्ता का एजेंडा उच्च-स्तरीय चीन अध्ययन समूह द्वारा तय किया जाता है. जिसकी बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के नेतृत्व में कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, उप-प्रमुखों के साथ सेना, नौसेना और वायुसेना, इंटेलिजेंस ब्यूरो और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख सदस्य शामिल रहते हैं. एजेंडा साफ होने के बाद ही सेना जमीनी स्तर पर मोल-तोल करती है और जो अंजाम होता है उसे जायज मानती है.

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वार्ता के दौरान भारतीय पक्ष में लेह स्थित 14 कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन, नवीन श्रीवास्तव, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, डीजीएमओ से एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अलावा स्थानीय सैन्य प्रतिनिधि शामिल रहे हैं.

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